बस्ती-गोरखपुर मंडल सहित पूर्वांचल के तमाम जिलों के लिए चुनौती बने इंसेफेलाइटिस की रफ्तार अभी धीमी है। स्वास्थ्य विभाग के पिछले चार साल के आंकड़ों पर निगाह डालें तो पीड़ित मरीज और मरने वालों की संख्या में इस बार खासी कमी आई है। इससे स्वास्थ्य महकमे के अफसर गदगद हैं।
गोरखपुर-बस्ती मंडल में 17 जून 2020 तक एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) और जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) के 49 मामले सामने आए हैं। इसमें से 10 की मौत हुई है। इंसेफेलाइटिस के इलाज से जुड़े चिकित्सकों का कहना है कि अभी तक इंसेफेलाइटिस के केस कम आए हैं।
1 जनवरी से 17 जून 2019 के बीच जहां 150-200 मरीज मेडिकल कॉलेज व अन्य अस्पतालों में भर्ती कराए गए थे, वहीं इस बार की अवधि में यह संख्या 49 है। पिछले सालों की तुलना में मौतें भी कम हुई हैं।
जेई का टीकाकरण बड़े पैमाने पर हुआ, फिर भी इसके तीन मरीज मिले हैं। स्वास्थ्य महकमा इसे चुनौतीपूर्ण मान रहा है। अफसरों का कहना है कि टीकाकरण अभियान को और प्रभावी बनाने की जरूरत है। ऐसा लग रहा है कि अलग-अलग चरणों के अभियान से कुछ बच्चे बच गए हैं।
महराजगंज में चार तो गोरखपुर में दो की मौत
स्वास्थ्य विभाग के पास 1 जनवरी से 10 जून 2020 के बीच के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उसके मुताबिक इंसेफेलाइटिस से 41 मरीज थे और 9 की मौत हुई थी। महराजगंज में नौ मरीज मिले थे। इसमें से चार की मौत हुई थी।
गोरखपुर और देवरिया में भी नौ-नौ मरीज मिले और दो-दो की मौतें हुईं। कुशीनगर में 14 केस आए और एक की मौत हुई। 10 से 17 जून के बीच आठ और मरीज बढ़ गए। इसके बाद कुल मरीजों की संख्या बढ़कर 49 हो गई। एक और मौत हुई तो इसकी कुल संख्या 10 हो गई
कोरोना संकट और इंसेफेलाइटिस के बीच स्वास्थ्य महकमे के लिए इस बार चार महीने चुनौतीपूर्ण रहेंगे। जुलाई से ही इंसेफेलाइटिस के मरीज बढ़ते हैं। यह बीमारी जुलाई, अगस्त, सितंबर और अक्तूबर में पीक पर रहती है। 15 नवंबर के बाद मरीजों की संख्या में कमी आती है।
एईएस, जेई के सर्वाधिक मरीज जुलाई, अगस्त, सितंबर और अक्तूबर में आते हैं। इंसेफेलाइटिस मरीजों का सटीक इलाज बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ही होता है, जो इस बार चुनौतीपूर्ण रहेगा। दरअसल, मेडिकल कॉलेज में ही गोरखपुर-बस्ती मंडल के कोरोना पॉजिटिव गंभीर मरीजों का इलाज चल रहा है। मेडिकल कॉलेज कैंपस रेड जोन घोषित है।
कई डॉक्टर भी कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं। जुलाई से इंसेफेलाइटिस के केस बढ़े तो इलाज में दिक्कत आएगी। एक साथ कोरोना और इंसेफेलाइटिस की चुनौती से निपट पाना आसान नहीं होगा। इंसेफेलाइटिस के गंभीर मरीजों को भी ऑक्सीजन, वेंटीलेटर की जरूरत पड़ती है। अभी 40 वेंटीलेटर कोरोना मरीजों के लिए सुरक्षित हैं। हालांकि बाल रोग विभाग आधुनिक-सुविधा संसाधनों से लैस है।
एईएस, जेई के सर्वाधिक मरीज जुलाई, अगस्त, सितंबर और अक्तूबर में आते हैं। इंसेफेलाइटिस मरीजों का सटीक इलाज बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ही होता है, जो इस बार चुनौतीपूर्ण रहेगा। दरअसल, मेडिकल कॉलेज में ही गोरखपुर-बस्ती मंडल के कोरोना पॉजिटिव गंभीर मरीजों का इलाज चल रहा है। मेडिकल कॉलेज कैंपस रेड जोन घोषित है।
कई डॉक्टर भी कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं। जुलाई से इंसेफेलाइटिस के केस बढ़े तो इलाज में दिक्कत आएगी। एक साथ कोरोना और इंसेफेलाइटिस की चुनौती से निपट पाना आसान नहीं होगा। इंसेफेलाइटिस के गंभीर मरीजों को भी ऑक्सीजन, वेंटीलेटर की जरूरत पड़ती है। अभी 40 वेंटीलेटर कोरोना मरीजों के लिए सुरक्षित हैं। हालांकि बाल रोग विभाग आधुनिक-सुविधा संसाधनों से लैस है।
गोरखपुर सीएमओ डॉ. श्रीकांत तिवारी ने कहा कि कोरोना संकट के बीच इंसेफेलाइटिस की चुनौती से निपटने की तैयारी पूरी है। 19 इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (ईटीसी) पर इलाज की बेहतर व्यवस्था है। चिकित्सक, स्वास्थ्य कर्मियों और एंबुलेंस चालकों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। 1 से 31 जुलाई के बीच अलग-अलग विभाग मिलकर काम करेंगे।
आशा बहू घर-घर दस्तक देंगी। जिस बच्चे को बुखार होगा, उसे तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा। अब जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेज और ईटीसी सेंटर पर वेंटीलेंटर की संख्या अच्छी हो गई है। किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी। इंसेफेलाइटिस को और प्रभावी ढंग से नियंत्रण किया जाएगा। अभी तक रिजल्ट बेहद सकारात्मक हैं।
आशा बहू घर-घर दस्तक देंगी। जिस बच्चे को बुखार होगा, उसे तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा। अब जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेज और ईटीसी सेंटर पर वेंटीलेंटर की संख्या अच्छी हो गई है। किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी। इंसेफेलाइटिस को और प्रभावी ढंग से नियंत्रण किया जाएगा। अभी तक रिजल्ट बेहद सकारात्मक हैं।