Vijay Divas : देश में 5 जुलाई 1999 की कारगिल विजय पर योगेंद्र यादव एवं सेना के बहादुर जावानों के शौर्य की कहानी , 17 हजार फीट ऊंची टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने का रखा लक्ष्य

KESHARI NEWS24

देश के महज 19 साल की उम्र और ढाई साल का सर्विस एक्सपीरियंस के साथ दुश्मन के साथ जंग में न उम्र का तजुर्बा, न सर्विस का ज्यादा अनुभव था , मन में सिर्फ एक हौसला रखें सामने 17 हजार फीट ऊंची टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने के लक्ष्य पर निकल गये , 

बुलंदशहर के रहने वाले ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव ने 17 गोलियां खाई फिर भी हार नहीं मानी। आज 5 जुलाई है, 21 साल पहले इसी दिन योगेंद्र यादव एवं सेना के बहादुर जावानों ने टाइगर हिल फतह हासिल  की थी, उन्हें इस बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया। इस यादगार दिन पर योगेंद्र यादव ने  टाइगर हिल पर कब्जे की कहानी को साझा किया...

टाइगर हिल करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर थी। इस पर कब्जे के लिए 18 ग्रेनेडियर यूनिट को जिम्मेदारी दी गई। जिसकी कमान लेफ्टिनेंट खुशहाल सिंह को सौंपी गई। हम 21 जवान थे। 2 जुलाई की रात हमने चढ़ना शुरू किया। हम रात में चढ़ते थे और पूरे दिन पत्थरों में छुपे रहते थे। क्योंकि दिन में दुश्मन हमें आसानी से देख सकते थे और हम पर अटैक कर सकते थे। जब हमने चढ़ना शुरू किया तो एक के बाद एक ऊंची चोटी दिखती जा रही थी। कई बार हमें लगता था कि यही टाइगर हिल है, लेकिन तभी उससे बड़ी चोटी दिखाई पड़ती थी। इस तरह हम भूखे-प्यासे रस्सियों के सहारे एक दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़ रहे थे। 

जब पाकिस्तान की आर्मी को इसकी भनक लगी कि इंडियन आर्मी ऊपर चढ़ गई है तो उन्होंने दोनों तरफ से फायर खोल दिए। जमकर फायरिंग की। इसी बीच हम सात बंदे ऊपर चढ़ गए। बाकी के जवान नीचे रह गए। फायरिंग इतनी जबरदस्त हो रही थी कि जो ऊपर थे वे ऊपर रह गए और जो नीचे थे वे नीचे ही रह गए। 

योगेंद्र कहते हैं कि हम 21 जवान थे, रात में चढ़ते थे और पूरे दिन पत्थरों में छुपे रहते थे, क्योंकि दिन में दुश्मन हमें आसानी से देख सकते थे।

4 जुलाई की रात जब हम कुछ और ऊपर पहुंचे तो सामने दुश्मन के दो बंकर थे। हम सातों जवानों ने एक साथ फायर खोल दिया। इस फायरिंग में पाकिस्तान के 4 जवान मारे गए। इसके बाद हम आगे बढ़े तो वहां से टाइगर हिल 50-60 मीटर की दूरी पर था। पाकिस्तान की फौज ने देख लिया कि इंडियन आर्मी यहां तक आ गई है। उसके बाद उन्होंने फायरिंग और गोलाबारी शुरू कर दी। फायरिंग ऐसी थी कि वहां से एक कदम आगे बढ़ने पर भी मौत थी और पीछे हटने पर भी हमारी जान जाती। मरना निश्चित था। 

योगेंद्र कहते हैं कि भारत मां के किसी भी सपूत ने पीठ में गोली नहीं खाई है। रक्त का एक कतरा भी बचता है तो वह पीछे नहीं मुड़ता है। हमने सोच रखा था कि मरना ही तो है। लेकिन उसके पहले दुश्मन को मारकर मरेंगे। जितना नुकसान पंहुचा सकते हैं पहुंचाएंगे। 

तब हमारे कमांडर थे हवलदार मदन, उन्होंने बोला कि दौड़कर इन बंकरों में घुस जाओ। हमने बोला सर माइन लगा रखी होगी तो उन्होंने बोला कि पहले माइन से मर जाओ। हमारी फौज के अंदर डिसिप्लिन है, जो आर्डर मिल गया उसे मानना ही था। 

5 जुलाई की सुबह हम उनके मोर्चे में घुस गए। वहां पांच घंटे हमने लगातार लड़ाई लड़ी। दोनों तरफ से जमकर फायरिंग हुई। धीरे- धीरे हमारे एम्यूनेशन खत्म हो रहे थे। हमारे बाकी जवान करीब 25-30 फीट नीचे थे। हमने उनसे कहा कि ऊपर नहीं चढ़ सकते तो एम्यूनेशन तो फेंको। उन्होंने रुमाल में बांधकर एम्यूनेशन फेंके। हम इतने मजबूर थे कि एक कदम आगे पड़े एम्यूनेशन को उठा नहीं सकते थे। क्योंकि ऊपर से दुश्मन देख रहे थे। 

योगेंद्र यादव को करगिल युद्ध में 17 गोलियां लगी थीं। हाथ में गोली लगने से हड्डियां अलग हो गई थीं।

जब हमारे पास एम्यूनेशन खत्म होने लगे तो हमने प्लान किया कि अब हम फायर नहीं करेंगे और पत्थरों में छुप गए। उधर से दुश्मन लगातार फायर कर रहे थे। करीब आधे घंटे बाद पाकिस्तान के 10-12 जवान ये जानने के लिए बाहर निकले कि हिंदुस्तान के सैनिक कितने हैं, सभी मारे गए या कुछ बचे हैं। 

हमने पहले से प्लान और आपस में कोऑर्डिनेशन बनाया हुआ था। वे जैसे ही बाहर निकले हमने एक साथ अटैक कर दिया। एक दो को छोड़कर बाकी सभी दुश्मन मारे गए। हमने वहां पड़े पाक के एम्यूनेशन उठा लिए। अब हमारे पास एम्यूनेशन भी थे और हथियार भी। पाक के जो जवान बच गए उन्होंने जाकर अपनी टीम को खबर कर दी। इसके बाद आधे घंटे के अंदर पाकिस्तान के 30-35 जवानों ने हमपर अटैक कर दिया। फायरिंग इतनी जबरदस्त थी कि करीब 20 मिनट तक हमें सिर उठाने नहीं दिया। उनके पास जितने हेवी हथियार थे, सबका इस्तेमाल किया।

इसके बाद हमने फिर से अपनी फायरिंग रोक दी और उनके नजदीक पहुंचने का इंतजार करने लगे। हम नहीं चाहते थे कि उन्हें हमारी लोकेशन पता चले। इसी बीच उन्हें हमारे एलमजी राइफल की लाइट दिख गई। उन्होंने ऊपर से उसपर आरपीजी (ग्रेनेड) दाग दिया। हमारा एलएमजी डैमेज हो गया। इसके बाद वे ऊपर से पत्थरों से हमला करने लगे। गोले फेंकने लगे। इसमें हमारे साथी जवान घायल हो गए, किसी का पैर कट गया तो किसी की उंगली कट गई। उनसे कहा गया कि अब फायर तो कर नहीं सकते तो नीचे चले जाओ लेकिन, उन्होंने नीचे जाने से इंकार कर दिया। यही भारतीय फौज की खासियत है, वह कभी पीछे नहीं मुड़ती।

सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव, कैप्टन बाना सिंह और सूबेदार संजय कुमार। तीनों परमवीर चक्र सम्मान से नवाजे जा चुके हैं।

उधर पाक के जवान लगातार फायरिंग कर रहे थे, ग्रेनेड फेंक रहे थे। वे बेहद करीब आ गए और हमें चारों तरफ से घेरकर अटैक कर दिया। पल भर में सबकुछ खत्म हो गया, हमारे सभी साथी शहीद हो गए। उनकी नजर में तो मैं भी मर चुका था। लेकिन मैं जिंदा था, बेहोश पड़ा था। उनके कमांडर ने कहा कि जरा चेक करो इनमें से कोई जिंदा तो नहीं है। वे आकर एक - एक को गोलियां मारने लगे। उन्होंने मुझे भी पैर और हाथ में गोली मारी, लेकिन मैंने आह तक नहीं किया, चुपचाप दर्द सहता रहा। 

मुझे यह विश्वास था कि अगर मेरे सीने में गोली नहीं मारी तो मैं मरूंगा नहीं। मैं चाहता था कि कैसे भी करके अपने साथियों को इसकी जानकारी दे दूं कि ये लोग हमारे नीचे की पोस्ट पर अटैक करने वाले हैं। कुछ देर बाद उनका एक जवान हमारे हथियार उठाने आया। उसने मेरे सीने की तरफ बंदूक तान दी, तब तो मुझे लगा कि अब मैं बचूंगा नहीं। लेकिन भारत मां की कृपा थी कि उसकी गोली आकर मेरी पॉकेट पर लगी जिसमें मैंने कुछ सिक्के रखे थे, शायद उससे मैं बच गया। 

 योगेंद्र को उनकी बहादुरी के लिए 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने परमवीर चक्र से सम्मानित किया था।

जब वो जवान आगे बढ़ा तो मैंने हिम्मत करके अपने पॉकेट से एक ग्रेनेड निकाला और उस जवान के ऊपर फेंक दिया। उस धमाके के बाद पाकिस्तान के जवान पूरी तरह हिल गए। इसके बाद मैंने दो तीन जगह से फायरिंग करना शुरू कर दिया। उन्हें लगा कि शायद सपोर्ट के लिए भारत की फौज आ गई है। और वे भाग खड़े हुए। 

उसके बाद मैं अपने साथियों के पास गया। कोई भी जिंदा नहीं बचा था। बहुत देर तक रोया। हाथ में गोली लगने से हड्डियां टूट गई थीं, असहनीय दर्द हो रहा था। मन कर रहा था कि हाथ को तोड़कर फेंक दूं। तोड़ने की कोशिश भी की लेकिन हाथ नहीं टूटा। फिर पीछे बेल्ट से हाथ को फंसा लिया। ढाई साल की नौकरी और 19 साल की उम्र। न तो उम्र का कोई तजुर्बा था न सर्विस का ज्यादा अनुभव। चारों तरफ बर्फ ही बर्फ थी। यह भी नहीं पता था कि भारत किधर है और पाकिस्तान किधर है। 

फिर एक नाले से लुढ़कते हुए नीचे पहुंचा। वहां से मेरे साथी आए और मुझे उठाकर ले गए। किसी को उम्मीद नहीं थी कि ये जिंदा रहेगा। उसके बाद मुझे मेरे सीओ कर्नल खुशहाल सिंह ठाकुर के पास ले जाया गया। मैंने उन्हें ऊपर के हालात के बारे में जानकारी दी। उसके बाद मुझे पता नहीं चला मैं कहां हूं। जब होश आया तो पता चला कि श्रीनगर आर्मी अस्पताल में हूं और वही मुझे जानकारी मिली कि हमारी टीम ने टाइगर हिल पर तिरंगा फहरा दिया है।

सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव को 15 अगस्त को 2000 को सेना के सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया। वे सबसे कम उम्र में यह सम्मान पाने वाले सैनिक हैं। वे बताते हैं कि जब 14 अगस्त को इसकी घोषणा हुई तो टीवी से जानकारी मिली कि मरणोपरांत 18 ग्रेनेडियर यूनिट के जवान योगेंद्र सिंह यादव को परमवीर चक्र मिला है। मेरे लिए यह गर्व की बात थी कि मेरे यूनिट के एक जवान को यह सम्मान मिलने वाला है। फिर मुझे बताया गया कि सुबह सेना प्रमुख मुझसे मिलने वाले हैं, मुझे पता नहीं था कि वो क्यों मिलने आ रहे हैं। जब वे आए तो उन्होंने मुझे बधाई दी। तब मुझे यह पता चला कि यह अवॉर्ड मुझे मिला है। दरसल मेरी यूनिट में मेरे ही नाम का एक और जवान था। इसलिए ये कंफ्यूजन हुआ।

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