यूपी बरेली मजबूर मजदूर बोला- दो जून की रोटी पाना किस्मत वाले होते है, हम गरीब की ऎसा किस्मत नहीं


दो जून की रोटी है तो एक मुहावरा, मगर महामारी के इस दौर लाखों मजदूरों पर ये चरितार्थ हो रहा हैं। कोई कड़ी धूप में खुद को घंटों तपाता है, तो कोई लाचार होकर भी इतना बोझा खींचता है कि नसें तन जाएं। हर किसी अलग कहानी है। बीते ढाई महीनों में मेहनतकश मजदूरों ने इसे जैसे झेला उसे शायद ही कोई भूल पाए? भूख लगी तो पैरों को पेट से सटाकर सो लिए। हजारों मील लंबा रास्ता जख्मी पैरों से तय कर लिया। दर्द और संवेदनाओं का ऐसा दौर शायद ही कभी दिखा हो। कोरोना काल में मजदूरों का पलायन हुआ। रोजगार छिना। वे घर पहुंचे तो अब उनके सामने रोजी रोटी का संकट है।

बिलसंडा के रामकृपाल भी इनमे से हैं गुरूग्राम में फैक्ट्री में काम करते थे, अब घर आ गए, मगर कमाएं और खाएं क्या? चार बच्चे हैं पत्नी हैं सिर्फ राशन से काम नहीं चल रहा। गांवों में हजारों कुशल कामगारों को रोजगार की जरूरत है, वे फावड़ा नहीं चला सकते। इलाहावास के सचिन ही ले लो, मोबाइल कंपनी में काम करता था, गांव में फंसा है। हालांकि इन सबके बीच तमाम ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने दो जून की रोटी के खातिर खुद का पेशा बदल दिया।

क्षेत्र में तमाम आटो चालक जो सवारियां ढोकर अपनी जीविका चलाते थे, बीते ढाई महीनों से गांव.गांव सब्जी और फल बेंच रहे हैं। लेकिन फिर भी उतना कमा नहीं पाते। कारण है कि सब्जी के रेट बहुत कम हैं। ऐसे में आमदनी भी कम होना स्वाभाविक है। सब्जी उगाने वाले किसानों के सामने भी भारी संकट है। उनकी उपज का दाम भी नहीं निकल रहा। हाइवे पर रोड किनारे 70 साल के एक बूढ़े बाबा भी खुद की 40 डिग्री तापमान में भट्ठी के सामने तपाते मिले। आंखों की नजर कमजोर है, लेकिन पेट की भूख उसपर भारी है। कृषियंत्र बनाकर पेट पाल रहे हैं। तब दो वक्त की रोटी मिलती है।

बिलसंडा क्षेत्र के गांव घुंघौरा, हर्रई, पहाड़गंज, बिलासपुर, ईंटगांव, कल्यानपुर समेत जिले में बड़ी तादात में महिलाएं कारचोबी का काम करती हैं। कपड़ों पर सुंदर कढ़ाई के साथ ही कीमती दरी कालीन भी बनाती हैं। लेकिन ढाई महीने के लाकडाउन से अब ऐसे कामगारों को कच्चा माल भी नहीं मिल पा रहा। ऐसे में उनका धंधा भी मंदा पड़ा है। घरों के पुरूष भी बाहर से आ गए, अब उनपर दोहरी मार पड़ रही है। 

अनलाक 1 में अब माल की डिमांड
करीब ढाई महीने के लाकडाउन के बाद अब अनलाक 1 सरकार ने घोषित किया है। मगर इसबीच हर तबके के सामान की जरूरत लोगों हैं। वो चाहें खाद्य पदार्थ हों या फिर इलैक्ट्रानिक या कच्चे माल से संबंधित। लोकल स्तर पर दुकानदारों के पास जो माल था वो करीब बिक चुका है। बड़े कारखाने अभी उस रफ्तार से नहीं चल पाए जैसे चलते थे। कारण ये है कि मजदूर गांवों में पहुंच चुके हैं। ऐसे में आने वाले समय में जरूरी सामान को लेकर भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

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