UP : 69000 शिक्षक भर्ती मामले में सुप्रीम कोर्ट से योगी सरकार को बड़ी राहत,

KESHARI NEWS24

लखनऊ. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को 69 हजार शिक्षक भर्ती परीक्षा में गलत प्रश्नों के विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने वाली अभ्‍यर्थियों की याचिका को सुनने से ही इनकार कर दिया है। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि पूरे देश की सभी परीक्षाओं में उत्तरमाला को चैलेंज करने का कल्चर बन गया है। याचियों ने हाईकोर्ट के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी, जिसमें बड़ी पीठ ने एकल पीठ के फैसले पर रोक लगा दी थी।

दरअसल, 12 जून को हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ की डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें गलत प्रश्नों को यूजीसी पैनेल के समक्ष भेजने की बात कही गई थी। इससे पहले हाईकोर्ट की डबल बेंच की इस रोक के बाद यूपी सरकार को बड़ी राहत मिली थी। योगी सरकार ने शिक्षक भर्ती की काउंसिलिंग भी शुरू करा दी थी। हालांकि, हाईकोर्ट की डबल बेंच के फैसले के खिलाफ अभ्‍यर्थी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे गए थे। याचिका में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने या उसे रद्द करने की मांग की गई थी।

हाईकोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया जारी रखने की दी थी इजाजत

शिक्षक भर्ती मामले में 12 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एकल पीठ के तीन जून को पारित उस अंतरिम आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें पूरी भर्ती पर रोक लगा दी गई थी। हालांकि इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने नौ जून को 69000 पदों में से 37339 पदों को शिक्षा मित्रों के लिए सुरक्षित रखते हुए उक्त पदों को भरने पर रोक का आदेश जारी कर दिया। 12 जून को सुनवाई के दौरान लखनऊ खंडपीठ ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि 37339 पदों को छोड़ शेष बचे पदों पर सरकार भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र है। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ ने चयन प्रक्रिया पर लगाई थी रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ ने सरकार द्वारा आठ मई, 2020 को घोषित परीक्षा परिणाम पर सवालिया निशान लगाते हुए कुछ प्रश्नों एवं उत्तर कुंजी पर भ्रम की स्थिति पाते हुए पूरी चयन प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी।

डिवीजन बेंच ने परीक्षा प्राधिकरण की ओर से दिए गए तर्कों पर प्रथम दृष्टया विचार करने पर पाया कि एकल पीठ ने स्वयं कहा था कि यदि प्रश्नों व उत्तर कुंजी में किसी प्रकार की भ्रम की स्थिति हो तो ऐसे में परीक्षा कराने वाली संस्था को भ्रम का लाभ दिया जाता है, तो ऐसे में उक्त टिप्पणी के खिलाफ जाकर परीक्षा प्राधिकरण की ओर से प्रस्तुत जवाब को सही न मानकर पूरे मामले को यूजीसी को भेजने का कोई औचित्य नहीं था।  

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !