उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अब वाराणसी के गंगा घाट किनारे बैठने वाले पंडितों और घाट किनारे होने वाले सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों पर टैक्स वसूलेगी. वाराणसी नगर निगम की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि घाटों पर ब्राह्मणों, पुरोहितों को गंगा किनारे अपनी चौकी लगाने के लिए नगर निगम में पंजीकरण कराना होगा. इसका वार्षिक शुल्क 100 रुपये है.
सरकार के इस कदम की विपक्ष ने आलोचना की है. विपक्ष के पार्षदों ने अधिकारियों से मुलाकात कर आंदोलन करने की चेतावनी भी दी है. टैक्स का विरोध करने वाले इसकी तुलना औरंगजेब के जजिया कर से कर रहे हैं.
नगर निगम वाराणसी के तहसीलदार विनय राय ने बताया कि परंपरागत रूप से गंगा घाट किनारे बैठने वाले तीर्थ पुरोहितों के पंजीकरण के लिए 100 रुपये शुल्क है. इसके अलावा धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रम करने वालों से शुल्क लिया जाएगा. जैसे सांस्कृतिक आयोजन वालों से प्रतिदिन चार हजार रुपये, धार्मिक आयोजन करने वालों से प्रति दिन 500 रुपये लिए जाएंगे. जो वार्षिक कार्यक्रम हैं, जैसे गंगा आरती उनसे पांच हजार रुपये प्रति वर्ष लिया जाएगा. उन्होंने बताया कि यह फैसला कोरोना के दौरान साफ-सफाई के मद्देनजर लिया गया है.
प्रभारी अधिकारी राजस्व नगर निगम की ओर से जारी आदेश के तहत वाराणसी के पांच घाट पर ही कपड़े धोने की इजाजत होगी. वहीं अगर कोई साबुन लगाकर नहाते पाया गया तो 500 रुपये जुर्माना उससे लिया जाएगा. इसके अलावा कचरा फेंकने पर 2100 रुपये जुर्माना होगा.
ब्राह्मण समुदाय हुआ योगी सरकार के फैसले से नाराज
वहीं सरकार की ओर से नगर निगम के जरिए थोपे गए इस टैक्स से गंगा आरती कराने वालों से लेकर गंगा घाट किनारे छतरी के नीचे परंपरागत रूप से कई पीढ़ियों से बैठकर पूजन-पाठ कराने वाले तीर्थ पुरोहितों तक में काफी नाराजगी है.
दशाश्वमेध गंगा घाट पर विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती कराने वाली संस्था गंगा सेवा निधि के अध्यक्ष सुशांत मिश्रा बताते हैं कि ये निर्णय कहीं से उचित नहीं है, क्योंकि देश दुनिया से लोग गंगा आरती देखने आते हैं और उनसे कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. उन्होंने बताया कि धार्मिक चीजों पर पहले कभी टैक्स नहीं लगा है, इसलिए इसपर सरकार को विचार करना चाहिए.
वहीं गंगा घाट के पंडा, तीर्थ पुरोहितों ने भी कहा कि यह टैक्स कहीं से उचित नहीं है, क्योंकि उनकी कोई निश्चित कमाई नहीं है और न ही यह कोई रोजगार है. अगर यह लागू होता है तो गंगा किनारे पुरोहित पूजा कराने ही नहीं आएंगे. उन्होंने आगे बताया कि वे सभी पहले से कोरोना काल में परेशान हैं. सरकार अपना निर्णय वापस नहीं लेती तो तीर्थ पुरोहित इसका विरोध भी करेंगे.
विपक्ष ने योगी सरकार के फैसले पर साधा - निशाना
विपक्ष के नेता और पार्षद भी सरकार को घेरने में लग गए हैं और तत्काल इस फैसले को हटाने के लिए नगर निगम के अधिकारी से मिलकर उनको ज्ञापन भी सौंपा. समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष विष्णु शर्मा ने बताया कि यूपी की योगी सरकार ने गंगा घाट किनारे उन ब्राह्मणों पर काला कानून थोपा है जिनपर भूखमरी की स्थिति है. इसके अलावा उन्होंने चेतावनी भी दी कि अगर यह टैक्स वापस नहीं लिया जाता वे इसका विरोध सड़क पर उतरकर करेंगे.
वहीं किरकिरी होती देख शासन यूटर्न लेती दिख रही है. उत्तर प्रदेश के पर्यटन, संस्कृति एवं धर्मार्थ कार्य राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉक्टर नीलकंठ तिवारी ने कहा है कि गंगा के घाटों पर परंपरागत तरीके से पूजा पाठ, धार्मिक कार्य एवं कर्मकांड कराने वाले पंडा समाज को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. उनसे कोई भी शुल्क नहीं लिया जाएगा. उन्होंने विशेष रूप से जोर देते हुए कहा कि गंगा के घाटों पर परंपरागत तरीके से पूजा पाठ, धार्मिक कार्य एवं कर्मकांड कराने वाले पंडा अपनी इच्छानुसार रजिस्ट्रेशन कराएं, अन्यथा इसके लिए भी कोई बाध्यता नहीं होगी.