देश में एक तरफ कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ देश को अनलॉक करने की प्रक्रिया भी आरंभ हो चुकी है। ऐसे में चुनौती बढ़ गई है।
कोरोना के बढ़ते खतरे तथा उसकी रोकथाम और इससे जुड़े वैज्ञानिक पहलुओं पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक प्रोफेसर बलराम भार्गव से मदन जैड़ा के ईमेल साक्षात्कार के प्रमुख अंश- अनलॉक वन शुरू हो चुका है, आपके विचार से दो महीने के लॉकडाउन से कितना फायदा हुआ ?
यह लॉकडाउन का ही असर है कि भारत में संक्रमण की स्थिति दूसरे देशों की तुलना में काफी कम है। लेकिन यह भी सही है कि संक्रमण में मौजूदा बढ़ोत्तरी भी इसी वजह से हुई है क्योंकि लोगों ने लॉकडाउन का पूरी तरह से पालन नहीं किया। टीके एवं दवा के बगैर कोरोना से लड़ने में लॉकडाउन कारगर सुरक्षा कवच साबित हुआ है।
आईसीएमआर इस महामारी के खिलाफ पूरी समझ और ताकत से लड़ रहा है और इसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकारें एवं गैर सरकारी संगठन पूरा सहयोग कर रहे हैं। हमने एक सोची समझी रणनीति के तहत देश के सभी इलाकों में कोरोना टेस्टिंग लैब संचालित करवाई हैं। इनमें वो इलाके भी शामिल है कि जहां पर यात्रा करना काफी कठिन है। लेह में 18 हजार फीट ऊंचाई पर भी हमने कोरोना टेस्टिंग लैब की स्थापना की। स्वास्थ्य कर्मचारियों को टेस्ट करने की ट्रेनिंग दी। जिन लोगों में संक्रमण पाया गया उनके सही इलाज की गाइडलाइन्स भी स्वास्थ्य विभागों के साथ साझा कीं।
सैंपल टेस्टिंग के पॉजीटिव होने की दर 4 से बढ़कर छह फीसदी तक पहुंचने लगी है।
इससे तो साफ है कि संक्रमण बढ़ रहा है ?
यह जरूर चिंता का विषय है और हम संक्रमण को काबू करने की दिशा में कई स्तरों पर काम कर रहे हैं। जांच का दायरा बढ़ा रहा हैं। जांच की किट और सामग्री का उत्पादन देश में करने लगे हैं। इससे सामग्री की कीमतें कम हुई हैं। साथ ही बीमारी के उपचार के लिए आक्सीजन, वेंटीलेटर और आईसीयू बेड भी बनाए हैं। हमने हर मोर्चे पर अपनी क्षमता बढ़ाई है। फिर भी कुछ राज्यों को छोड़कर स्थिति बहुत हद तक नियंत्रण में है।
क्या रैपिड एंटीबाडीज टेस्ट के लिए एलाइजा टेस्ट ही इस्तेमाल किया जाएगा ?
क्यों नहीं, एलाइजा टेस्ट से किसी व्यक्ति के रक्त की जांच कर यह पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति में एंटीबॉडी हैं या नहीं। यदि व्यक्ति में एंटीबॉडी पाए जाते हैं तो यह मालूम हो जाता है कि उसे पहले कोरोना हो चुका है या फिर करोना संक्रमित व्यक्ति से संपर्क में आ चुका है। यह कोरोना प्रभावित व्यक्तियों की संख्या का अनुमान लगाने में फायदेमंद साबित होगा।
हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन पर आईसीएमआर के अध्ययन और डब्ल्यूएचओ के आकलन में इतना फर्क क्यों हैं ?
अब तो डब्लूएचओ ने भी एचसीक्यू के ट्रायल पर लगाया गया अपना बैन हटा लिया है। हम पहले से ही कह रहे थे कि इस दवा के लोकल ट्रायल्स में किसी तरह का कोई प्रभावी साइड इफ़ेक्ट देखने को नहीं मिला है।
क्या भारत में वायरस कमजोर पड़ रहा है?
अभी इस विषय में कुछ कहना उचित नहीं है। हमारी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच हो।
वायरस में म्यूटेशन को लेकर आईसीएमआर के अध्ययन क्या कहते हैं?
कोरोना वायरस की जो मूल प्रकृति है उसमें कोई म्यूटेशन देखने को नहीं मिला है। जो वायरस भारत में हैं वो बाकी देशों की तुलना में अलग नहीं है।
कोरोना संक्रमण कब पीक पर पहुंचेंगा ?
यह नया वायरस है और इसके बारे में बहुत ज्यादा ज्ञात नहीं है। इसकी दवा भी नहीं है इसलिए लोगों का व्यवहार, सोशल दूरी, मास्क का प्रयोग ही इसका प्रकोप रोकने में कारगर होता है। इन उपायों के जरिये हमारी कोशिश यह है कि पीक कभी नहीं आए। इसमें हम काफी हद तक सफल भी हो चुके हैं। लॉकडाउन, सावधानी, परीक्षण और उपचार के मजबूत इंतजाम करके हमने संक्रमण के इस चक्र को विभाजित कर दिया है। नतीजा यह है कि आज नए संक्रमण की अपेक्षा ठीक होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ने को है। यह वास्तव में एक राहत की बात है। लेकिन हमें लापरवाह नहीं होना है।
आईसीएमआर की लैब दवा, टीके और टेस्टिंग को लेकर क्या कर रही हैं?
हम हर स्तर पर काम कर रहे हैं। वैक्सीन के अलावा लोकल टेस्ट्स किट्स, एंटीबाडी टेस्ट, आरटीपीसीआर, आरएनए एक्सट्रशन किट का उत्पादन भारत में हो रहा है। हमने इस दिशा में ठोस काम किया है। आज हमारी स्थिति काफी मजबूत है। जांच के लिए हम विदेशी किट्स पर निर्भर नहीं हैं। पीपीई किट्स के अलावा कई जरुरी सामान देश में ही बन रहा है। कुछ समय में हम इनका निर्यात भी शुरू कर सकते हैं।
अंत में कोरोना की समस्या कितनी गंभीर है, क्या वास्तविक आकलन हुआ है ? सामुदायिक संक्रमण को लेकर क्या कहेंगे ?